कुछ कही और बहुत कुछ अनकही...कुछ सुनी और बहुत कुछ अनसुनी...जीवन की गाड़ी कुछ स्टेशनों पर रूकती और बहुत से स्टेशनों को छोड़ते हुए ...चली जा रही है जैसे अपनी मंजिल पर रुक के ही दम लेगी...इस यात्रा का भाग बनिए और लघु कथाओं और व्यंगचित्रों का आनंद लीजिये ... इस स्टेशन पर बस कुछ ही पल रुकना है...जब जी चाहे ...
really one the point
ReplyDelete😀😀😀बा तो निकली ही जा रही है चाची,सच सच बता दो लेने है कि नहीं😊😊😀😀बचपन
ReplyDeleteकितना अनूठा होता है,हरएक का बचपन,साथ ही माता पिता की मजबूरी किसी Higher Demand को ना पूरी कर पाने की..जिन्दगी के अनगिणित रंग..🤔🤔
😀😀😀बा तो निकली ही जा रही है चाची,सच सच बता दो लेने है कि नहीं😊😊😀😀बचपन
ReplyDeleteकितना अनूठा होता है,हरएक का बचपन,साथ ही माता पिता की मजबूरी किसी Higher Demand को ना पूरी कर पाने की..जिन्दगी के अनगिणित रंग..🤔🤔